Natasha

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लेखनी कहानी -27-Jan-2023

ईश्वर की इच्छा


विक्रमादित्य के इस प्रश्न पर सभासदों के विभिन्न मत थे कि सज्जनता बड़ी है या ईश्वर शक्ति। कई दिन तक विचार- विमर्श होने पर भी निर्णय न निकल सका। कुछ दिन बीते। राजा एक दिन परिभ्रमण के लिए निकले।

दुर्भाग्य से मार्ग में किसी आखेटक जाति के आक्रमण के फलस्वरूप उनका शेष सहयोगियों से संबंध टूट गया। वे निविड़ वन में भटक गये। जंगल में प्यास के मारे राजा का दम घुटने लगा। कहीं पानी दिखाई नहीं दे रहा था। किसी तरह वे एक कुटिया के पास पहुँचे। वहाँ एक साधु समाधि में मग्न थे। वहाँ पहुँचते- पहुँचते महाराज मूर्छित होकर गिर पड़े। गिरते- गिरते उन्होंने पानी के लिये पुकार लगाई।

कुछ देर बाद जब मूर्च्छा दूर हुई तो महाराज विक्रमादित्य ने देखा, वही सन्त उनका मुँह धो रहे हैं, पंखा झल रहे और पानी पिला रहे हैं। राजा ने विस्मय से पूछा- ‘‘आपने मेरे लिये समाधि क्यों भंग की? उपासना क्यों बन्द कर दी?’’ सन्त मधुर वाणी में बोले- ‘‘वत्स! भगवान् की इच्छा है कि उनके संसार में कोई दीन- दुःखी न रहे। उनकी इच्छापूर्ति का महत्व अधिक है।’’ इस उत्तर से उनका पूर्ण समाधान हो गया। सेवा और सज्जनता भी शक्ति- साधना का अंग है।

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